1857 की क्रान्ति में दलित वीरांगना रणबीरी वाल्मीकि का योगदान / Role of dalit virangana Ranbiri Valmiki in 1857 revolution
भारत देश के नागरिकों को अपने वीर सपूतों पर गर्व है, जिन्होंने देश की मर्यादा की रक्षा करते हुए अपना सर्वस्व लूटा दिया। इतिहास में ऐसे कई लाल हुए हैं, जिन्होंने अपनी जान से भी अधिक महत्व आजादी को दिया है। यही कारण है कि कृतज्ञ भारत ऐसे वीरों और वीरांगनाओं को हमेशा याद करेगा। भारतीयों ने ब्रिटिशों की दासता से मुक्ति प्राप्त करने हेतु सर्वप्रथम प्रयास 1857 में किया था, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है। इस गदर की शुरूआत 10 मई, 1857 को मेरठ की क्रान्तिकारी धरा से हुई थी। अंग्रेजी सत्ता को नष्ट करने के लिए न केवल क्रान्तिकारियों अपितु भारतीय जनता ने भी खुलकर भाग लिया था। जिन महानतम विभूतियों ने अपने देश की आजादी में अपने प्राणों की बलि दी उनमें से एक थी, रणबीरी वाल्मीकि जो कि जनपद मुजफ्फरनगर के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्र शामली तहसील की रहने वाली थी। शामली आज एक स्वतन्त्र जनपद है। शामली को 28 सितम्बर 2011 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री बहन कु0 मायावती के कार्यकाल के दौरान जिले का दर्जा मिला। बहन जी ने शामली को प्रबुद्धनगर नाम दिया था, जो बाद में बदलकर पुनः जुलाई 2012 में शामली कर दिया गया है। यह क्षेत्र गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में आता है। महाभारत काल में शामली ‘कुरु’ क्षेत्र का हिस्सा था। उस समय शामली जनपद मुजफ्फरनगर जनपद की एक तहसील हुआ करती थी। 13 मई, 1857 को पूरा मुजफ्फरनगर जनपद क्रान्तिमय हो गया था। मुजफ्फरनगर के आसपास के क्षेत्रों (जैसे शामली तहसील) में भी विद्रोह प्रबल था। इस समय तहसील शामली अपनी स्थिति के कारण विद्रोह का केन्द्र बिन्दु थी। शामली में विद्रोह का नेतृत्व चौधरी मोहर सिंह तथा कैराना में सैयद – पठान कर रहे थे। चौधरी मोहर सिंह के पास एक फौज की टुकड़ी थी, जो उनके कुशल नेतृत्व की पहचान थी। 1857 की इस क्रान्ति में महिलाएँ भी किसी से पीछे नहीं थी। वे भी अपने परिवारों को छोड़कर 1857 के महासंग्राम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही थी। इन्हीं क्रान्तिकारी महिलाओं में से एक थी रणबीरी वाल्मीकि, जो चौधरी मोहर सिंह के नेतृत्व में लड़ी जा रही जंग में शामिल थी। रणबीरी वाल्मीकि एक कुशल तलवारबाज थी। उनकी इस कुशलता से खुश होकर ही चौधरी मोहर सिंह ने उन्हें अपनी टुकड़ी में शामिल किया था। उस समय मि.सी. ग्राण्ट ज्वाइन्ट मजिस्ट्रेट ने जिला प्रशासन की बागडोर सम्भाली, तब विद्रोह अपनी चरम सीमा पर था। परन्तु वह विद्रोह को दबाने में असफल रहा और इन हालात में चौधरी मोहर सिंह और उनके साथियों ने शामली तहसील पर मई माह में अपना कब्जा कर लिया। वहाँ के तत्कालीन तहसीलदार इब्राहिम खाँ ने भाग कर अपनी जान बचाई। शामली तहसील पर चौधरी मोहर सिंह का कब्जा लगभग दो माह तक चलता रहा। अगस्त माह तक शामली तहसील पर चौधरी मोहर सिंह का कब्जा बरकरार रहा। अंग्रेजी अफसर मि. एडवर्ड को मोहर सिंह का यह कब्जा पच नहीं रहा था। उन्होंने मि.सी. ग्राण्ट ज्वाइन्ट मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में एक फौजी टुकड़ी शामली में भेजी। इसकी सूचना मोहर सिंह को भी मिल गई थी। तब मोहर सिंह ने शामली में जंग होने के हालात में तथा शामली को बर्बाद होने से बचाने के लिए अपने क्रान्तिकारी वीरों एवं वीरांगनाओं के साथ जिनमें रणबीरी वाल्मीकि भी शामिल थी, बनत गाँव के पास पहुँच कर मोर्चा जमा लिया। यहीं पर अंग्रेजी सैनिकों और क्रान्तिकारियों के बीच संघर्ष होने लगा। मोहर सिंह एवं उसके साथी अंग्रेजी सैनिकों के सरों को कलम करने लगे। इस संघर्ष में रणबीरी वाल्मीकि ने अपने रण कौशल का परिचय देते हुए दुश्मनों के दाँत खट्टे कर दिए और उन्होंने कई अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इससे अंग्रेजों की सेना में खलबली मच गई। अंग्रेजी सैनिक जो कि आधुनिक हथियारों से लैस थे, ने विचलित होकर महिला क्रान्तिकारियों पर गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी जिनमें बहुत सी महिलाओं सहित रणबीरी वाल्मीकि भी आजादी की भेंट चढ़ गई। इस प्रकार से इस क्रान्तिकारी दलित वीरांगना ने भारत भूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की बलि देकर न केवल दलित समाज का सिर गर्व से ऊँचा किया है बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष का नाम रोशन किया है। वर्तमान में संघर्षशील महिलाओं के लिए भी उन्होंने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। वीरांगना रणबीरी वाल्मीकि जी का नाम भारतीय इतिहास में सदैव सुनहरे अक्षरों में दर्ज रहेगा।
सन्दर्भः-
1. डॉ. प्रवीन कुमार (2016) स्वतन्त्रता आन्दोलन में सफाई कामगार जातियों का योगदान (1857-1947), सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ.सं. 88.
2. मौ.उमर कैरानवी (2007) कैराना कल और आज, कैराना वेबसाइट समिति
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