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19 May 2024 · 1 min read

19. *मायके की याद*

आज भी….
जब-जब…
याद मायके की आई,
तो न जाने क्यों मेरी…
अंखियां बरबस भर आई!

अब भी…
याद आती है…
वो गलियां, वो सखियाँ,
जहाँ मैं अपना…
बचपन छोड़ आई!

अक्सर….
खो जाती हूँ…
उन अपनों की याद में,
जिनके पास मैं अपना…
दिल छोड़ आई!

जीना चाहती हूँ…
उन रिश्तों के साथ,
जिनके पास मैं अपना…
सुख-चैन छोड़ आई!

दहलीज पर कदम…
रखते ही ससुराल की,
क्या बताऊँ किसी को…
क्या-क्या मैं छोड़ आई!

सलीका-संस्कार….
सब साथ ले आई,
पर बेबाक हंसी…
वहीं छोड़ आई!

बड़ा शहर मिला…
रिवायतें भी अलग सी,
पर….
बचपन की मदमस्त अदायें…
वहीं छोड़ आई!

न थी….
लोगों की परवाह….
न था दुनिया का झमेला,
सुबह से रात तक की…
मस्ती वही छोड़ आई!

काश! कोई…..
एक बार बुलाकर…
रोके तो हाथ पकड़ कर,
पर…
न लौटने की…..
जिद्द और अपनापन…
‘मधु’ सब वही छोड़ आई!

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