16- त्रासदी
त्रासदी
दिल्ली आने की चाहत कितनी निकली क्रूर
कोरोना का भय है भारी दिल्लीहो गई दूर।।
दिल्ली दरियादिल है और दुनिया में मशहूर ।
मिलने की चाहत है दिल में फिर भी सब मजबूर।।
कुशल क्षेम मोबाइल देता होता मन को हर्ष
मिलने की चाहत में लगता हो गये कितने वर्ष ।
प्रियजन हैं आने कोआतुर पर कुछ थोड़ी लाचारी।
जगह-जगर पर जाम लगे और विपदा होती भारी ।।
सोच-सोच घर से ना निकलें बदल रहे प्रोग्राम।
विषम परिस्थिति पैदा हो गई बन्द हुए सब काम।।
सरकारी नियम का पालन नहीं करो चालान।
अर्थदण्ड देने की खातिर पुलिस करे परेशान।।
कोरोना ने जो पीड़ा दी है जीना हुआ मुहाल ।
सबसे अच्छा सबसे बेहतर घर में रहो खुशहाल।।
नहीं मुछीका नहीं अंगोछा नहीं कोई चालान।
पल्लू में एक गाँठ बाँध लो सुनकर यह फरमान।।
“दयानंद”