14. बात
हम कहते हैं कोई बात-
वह – सुन लेते हैं।
प्रतिकार नहीं करते ।
तिरस्कार भी नहीं करते।
बस –
बात को आत्मसात कर लेते हैं।
फिर ?
कुछ मनन कर,
कुछ अध्ययन कर।
उसी बात को –
तरोड़ मरोड़ कर
अपना पेटेंट कहते हैं।
बात –
हमसे निकली-
हमने सुनी,
हमने ही कहीं –
पर रही,
अनकही
बात में दम न था ?
या खम न था
सब होते हुए भी
बस
अन्दाजे बयां उनके जैसा न था,
इसीलिए –
बात –
रही दबी।
बदला अंदाजे बयां
उनके मुख से चल निकली वही बात।
वहीं
पेटैंट की मोहर,
ठप्प कर
जय जयकार की गूंज-सी निकली
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