14. *क्यूँ*
एक अल्हड़ सी लड़की…
जो कभी अपनी ही मस्ती में रहती है।
अपनी राहें खुद ही चुनती है।
हर गम को धुंए सा उड़ाती है।
हर पल चिड़ियों सा चहकती है।
बिना बंदिशों के भी मर्यादा में रहती है।
क्यूँ बदल जाता है सब , उस पल से…
जब वो एक औरत बन जाती है।
सब ख्वाहिशों पर अंकुश लग जाता है।
अपने पांव पर खड़े होते हुए भी…
अपनी राहें स्वयं नहीं चुन पाती है।
उसे अंगुली थाम कर चलना पड़ता है।
क्यूँ एक लड़की औरत बनकर…
अबला एवं निर्बला बन जाती है।
क्यूँ उसका सही फैसला भी..
उसी की गल्ती बन जाती है।
क्यूँ अपनी हर इच्छा वह…
अपने ही दिल में दफन करती है!
क्यूँ कदम-कदम पर अत्याचार सहती है!
मर्यादा में रहते हुए भी ‘मधु’….
क्यूँ बंदिशों में जीती है।