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कुछ ख्वाबों से ऊब गये क्या
कहीं और सपने बुनने लगे हो
मुहब्बत सच्ची नहीं लगती ?
गैरों को जो गौर से सुनने लगे हो
सब कुछ खोया दिल वीरान हो गया
यार ये इश्क कहां ? एहसान हो गया
चंद लम्हे ही तो थे हमारे पर ?
मुलाकात मे़ं भी मुहलत गिनने लगे हो