?ब्रज की होरी?
?? तंत्री छंद ??
?विधान~
प्रति चरण 32 मात्राएँ,8,8,6,10मात्राओं
पर यति चरणान्त 22 , चार चरण, दो-दो
चरण समतुकांत।
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रोक रहे मग, अब क्यों नटवर, विनय करें, सब सखी सयानी।
माखन खाकर, भी इतराते, कहन लगीं, यों राधारानी।
नन्द दुलारे, मोहन प्यारे, बहुत हुई, अब तो बरजोरी।
भूल रहे हो, काले कनुआ, विनय सुनो, प्रिय कान्हा मोरी।
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सुनो प्रिया जू, प्रेम पिपासु, भ्रमर लखें, ज्यों कलियां कच्ची।
ज्ञान पिपासु, राह निहारें, भावातुर, हो दुविधा सच्ची।
त्यों ही जानो, प्रीत हमारी, ढूंढ रही, कजरारे नैना।
‘तेज’ विरह की, अगन बुझाओ, बोलो तो, मधुरिम से बैना।
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फाग महीना, है अलबेलौ, आ गोरी, खेलिंगे होरी।
कुंज गलिन में, धूम मचावत, ग्वाल-बाल, निज भर-भर झोरी।
रंग-अबीरन, गगन पटौ है , खेलत हैं, सब छोरी-छोरा।
देख छटा कूं, जगती कहती, होरी है, जग या ब्रज होरा।
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?तेज✏️मथुरा✍️