?कच्ची है माटी जैसी चाहे गढ़िए?
प्रायः यह देखा गया है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से लेकर अभी तक भारतवासियों के ऊपर से अंग्रेज़ी भाषा व पाश्चात्य तौर तरीकों का भूत उतरा नहीं बल्कि सर चढ़ कर बोल रहा है। आज तक हमारे देश में अधिकांशतः भारतीय परिवारों में अंग्रेजी भाषा, पाश्चात्य संस्कृति व सभ्यता और पश्चिमी तरीके के रहन-सहन का अनुसरण करने की प्रवृत्ति बहुत अधिक पाई जाती है।
बच्चा जब शैशवावस्था में होता है तब से ही उसे अंग्रेज़ी शब्द, सामान्य शिष्टाचार के विभिन्न तौर तरीके, अंग्रेजी राइम्स आदि सिखाने और उसे औरों के समक्ष प्रदर्शित करने को अधिकतर दम्पत्ति बड़े गर्व की बात समझते हैं। यही पाश्चात्य सभ्यता से लगाव कालांतर में हमारे बालकों को एक अंग्रेजी रंगरूट के रूप में परिवर्तित कर देता है।
परिवार जनों का विदेशी सभ्यता एवं पश्चिमी तरीके के खानपान, रहन-सहन का अपनी दिनचर्या में शामिल करना तथा दैनंदिनी वार्तालाप अंग्रेजी में करना यह सब बच्चे पर
प्रतिकूल प्रभाव डालता है।बच्चा यदि अपनी मातृभाषा में कुछ बोलना चाहता भी है तो उसे तुरंत टोक कर उसे उसका अंग्रेजी अनुवाद बताया जाता है कि बेटा ऐसे नहीं ऐसे बोलते हैं।
कालांतर में यही बालक एक ऐसे भारतीय युवा नागरिक के रूप में हमारे सम्मुख खड़ा हो जाता है जो कि न तो भारतीय संस्कृति व परम्पराओं से भिज्ञ होता है और न ही अपनी मातृभाषा से पूर्णतः परिचित होता है। इसके साथ ही साथ वह भारतीय संस्कृति और इसमें स्थापित प्रथाओं, परम्पराओं, रीति रिवाजों को हेय दृष्टि से देखता है व इनमें तनिक भी आस्था नहीं रखता। ऐसी स्थिति उत्पन्न होने के बाद ही उनके अभिभावकों गहरा धक्का लगता है और अपनी त्रुटि का एहसास होता है किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
हमारी गौरवशाली सर्वोत्कृष्ट भारतीय संस्कृति संपूर्ण विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। इस महान संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्राचीन काल से संसार भर से विद्यार्थी यहां आते रहे हैं। इस संस्कृति का ज्ञान हमारे बालकों को ही न हो इससे अधिक दुखदायी व लज्जाजनक बात और क्या हो सकती है। साथ ही साथ यह भी कहना चाहती हूँ कि कोई भी भाषा बुरी नहीं होती। अंग्रेज़ी भाषा सीखने में कोई बुराई नहीं है किन्तु वह हमारी मातृभाषा का स्थान ले ले यह असहनीय है।
अतएव आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों को बाल्यकाल से ही भारतीय संस्कृति के दर्शन करवाए जाएं।
1. प्रातः उठते ही सर्वप्रथम घर के देवी देवताओं के नमन के पश्चात बड़ों के चरणस्पर्श करने की शिक्षा दी जाए।
2.भोजन करने से पहले वह भोजन के बाद ईश्वर का स्मरण कर उन्हें धन्यवाद दें व थाली को प्रणाम करें।
3.घर पर आने वाले बड़ों के चरणस्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लें।
4.माता पिता के साथ दिनभर में कुछ समय अवश्य बिताएं।
5.घर के सभी वयोवृद्ध सदस्यों को सर्वाधिक सम्मान व सहयोग दें। उनका ध्यान रखें।
6.घर के धार्मिक व सांस्कृतिक पर्वों की जानकारी रखें एवं उनमें सम्मिलित हों।
7 .उच्च से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी घर में बोलचाल अपनी मातृभाषा में ही करें।
यदि हम बच्चों के पालन पोषण के विषय में प्रारंभिक स्तर से ही सजग व जागरूक होंगे तो भविष्य में किसी माता-पिता को अपनी प्यारी भारतीय संस्कृति का अपमान होते हुए नहीं देखना पड़ेगा तथा हमारे नौनिहाल एक सर्वगुण सम्पन्न भारत नागरिक के रूप में तैयार होंगे।
—रंजना माथुर दिनांक 03/10/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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