? माँ ?
? माँ ?
?? गीत ??
?तर्ज- तुझे सूरज कहूँ या चन्दा…..
जग में सब शीशमहल सा
माँ होती सच्चा मोती।
सुख-दुःख सहकर जो पाले
वह तो केवल माँ होती।
सन्तति को खुश रखने को
हर हाल में ही खुश रहती।
हर कष्ट-वेदना माता
हंसते हंसते ही सहती।
बच्चों के लिए बन जाती
तमनाशक जीवन-ज्योति।
सुख-दुःख सहकर जो…..
पर्वत से दुःख पर पड़ती
राई सी माँ जब भारी।
अनुपम गुण की महिमा को
गाती है दुनियां सारी।
है स्वर्ग पड़ा चरणों में
चुन-चुन के ख़ुशी पिरोती।
सुख-दुःख सहकर जो…..
ईश्वर का अंश धरा पर
अगणित से बोझ उठाए।
हर हाल में तन के रहती
नहीं कष्टों से घबराए।
औलाद को मुंह का निवाला
दे खुद भूखी ही सोती।
सुख-दुःख सहकर जो…..
जो करता माँ की सेवा
बिन मांगे सब कुछ पाता।
हो पूत कपूत भले ही
माता नहीं होत कुमाता
बंजर में भी माँ ममता से
बीज ‘तेज’ के बोती।
सुख-दुःख सहकर जो पाले
वह तो केवल माँ होती।
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?तेज मथुरा