??ब्रज की होरी??
?बोलो होरी के रसिया की जय?
??मत्तगयन्द सवैया छंद??
विधान – ७ भगण गु गु(१२-११ यति)
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कोमल कन्त किलोल करें कलि,
कीर्तिसुता कर काठ कमोरी।
बाल ब्रजेश बने ब्रज बालक,
बाढहिं बालक बृद्ध बहोरी।
नेह नवे नित नैन नवांकुर,
नीति नवीन नचें नवगोरी।
पुष्टि प्रदायक प्रेम प्रवाहक,
प्रीत पगी पुनि पावनहोरी।
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लोचन लाल लखे लज लालन,
घूंघट ओट बचाय किशोरी।
फेंट कसी मँह खोंसत वेणुहिं,
मारत टेसुन घोर कमोरी।
कुंज-निकुंज भये बहुरंगन,
केसर कीच पलोटत गोरी।
रंग-अबीर गुलाल उड़ावत,
श्याम सखा भरिकें निज झोरी।
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संग सखी सिग सोहत सारँग,
स्यामल सुंदर सार सुनो री!
बाजि रहे ढप-ढोल ढमाढम,
द्वार खड़ीं वृषभानु किशोरी।
देखि अनूप छटा ब्रज भूपति,
‘तेज’ करै पग-चाप निहोरी।
जीव चराचर हैं उमगे अजु,
देखि प्रिया-प्रिय की बरजोरी।
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?तेज✏मथुरा✍?