?संत शिरोमणी रविदास जी,,,,?
?संत शिरोमणी रविदास जी,,,,?
मेरे हिसाब से आज भी तार्किक है,,,
आज हमारे भारत वर्ष के सन्त परम्परा के काबिल बहुत ही शांत सत्य,सभ्यता,सालिन को धारित करने बाले सन्त रविदास जी महाराज की जन्म जयंती है जो कि उस समय के हिसाब से बहुत ही समाज सुधार के प्रेरक और प्रचारक रहे वैसे तो हमारे देश भारत में सदियों से अनेक महान संतो ने जन्म लेकर इस भारतभूमि को धन्य किया है जिसके कारण भारत को विश्वगुरु कहा जाता है और जब जब हमारे देश में धर्म की निम्नता प्रदर्षित हुई है,ऊचनीच,भेदभाव,जातीपाती, धर्मभेदभाव अपने चरम अवस्था पर हुआ है तब सभी की समता सुगमता और सरलता को बनाने के लिए समाज के उत्थान और मार्गदर्शन की खातिर तब तब हमारे देश भारत में अनेक महापुरुषों ने इस धरती पर जन्म लेकर समाज में फैली बुराईयों, कुरूतियो को दूर करते हुए अपने बताये हुए सच्चे मार्ग पर चलते हुए मानव हित देश हित भावना से पूरे समाज को एकता के सूत्र में बाधने का काम उस समय के सन्तो ने किया है जिनमे कबीर, रसखान,मीरा,रहीम,आदि कावि सन्त रहे है इन्ही महान संतो में संत गुरु रविदास जी का भी नाम आता है जो की उस समय 15वी सदी के एक महान समाज सुधारक,तार्किक,राष्ट्रवाद समाज की निम्नता उच्चता के धुर विरोधी,मूर्ति पूजा,पाखण्ड,अंधविस्वास के लिए लॉगो को अपने काव्य,दोहा,छंद रचानाओ और बातो से जागरूक और उत्प्रेरक का कार्य किया वो एक दार्शनिक कवि और धर्म की भेदभावना से ऊपर उठकर भक्ति भावना दिखाते है और वह उनका जीवन लक्ष्य भी रहा आज उन परम् सन्त रविदास जी के जीवन समाज,और अन्य बातों को जानते है तो आईये ऐसे महान संत गुरु रविदास जी के जीवन के बारे में जिनके जीवन से हमे धर्म और जाती से उठकर राष्ट्र,समाज,सर्वहित कल्याण की भावना की सीख मिलती है
वैसे तो संत गुरु रविदास के जन्म से जुडी जानकारी पूर्ण और सत्य रूप से नही मिलती है लेकिन साक्ष्यो और तथ्यों के आधार पर जो जन शुर्ति है कि महान संत गुरु रविदास का जन्म तथ्यों के आधार पर 1377 के आसपास माना जाता है पंचांग के महीने के अनुसार महान संत गुरु रविदास का जन्म माघ महीने यानी के आज के कलेंडर के जनवरी माह पूर्णिमा के दिन माना जाता है और इसी दिन हमारे देश में महान संत गुरु रविदास की जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है,उनके जो काव्य ग्रन्थ,कथन,उपदेश,वाक्य है वह आज भी सामाजिक राष्ट्रीय स्तर पर सुधार और सहयोग के लिये कारगर है,,,
खास बात जो कि सन्त रविदास जी को अन्य समाकालींन सन्तो से अलग करती है वो है मूर्तिपूजा,तीर्थयात्रा मन्दिर प्रथा,महिलाओं से भेदभाव,जातियता के आधार पर श्रेष्ठता का मापन आकलन जैसे दिखावों में रैदास जी का बिल्कुल भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं स्वऊर्जा कार्य शैली और आपसी भाईचारे मिलनसारिता कर्तव्यनिष्ठा को ही सच्चा धर्म मानते थे। रैदास जी ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल,व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रैदास को उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय रहे हैं। सीधे-सादे पदों में संत कवि ने हृदय के भाव बड़ी स़फाई से प्रकट किए हैं। इनका आत्मनिवेदन, दैन्य भाव और सहज भक्ति पाठक के हृदय को उद्वेलित करते हैं। रैदास के चालीस पद सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में भी सम्मिलित हैं।
संत रविदास अपने ग्राम गुरु शारदा नंद के पाठशाला गये जिनको बाद में कुछ उच्च जाति के लोगों द्वारा रोका किया गया था वहाँ दाखिला लेने से।हालाँकि गुरु शारदा ने यह महसूस किया कि रविदास कोई सामान्य बालक न होकर एक अलौकिक के द्वारा भेजी गयी संतान है अत: शारदानंद ने रविदास को अपनी पाठशाला में दाखिला दिया और उनकी शिक्षा की शुरुआत हुयी। वो बहुत ही तेजऔर होनहार थे और अपने गुरु के सिखानेसे ज्यादा प्राप्त करते थे। सभी उनके व्यवहार से बहुत प्रभावितरहते थे उनका विचार था कि एक दिन रविदास आध्यात्मिक रुप से प्रबुद्ध और महान सामाजिक सुधारक के रुप में जाने जायेंगे। एक दिन दोनों लोग एक साथ लुका-छिपी खेल रहे थे, पहली बार रविदास जीजीते और दूसरी बार उनके मित्र की जीतहुयी। अगली बार, रविदास जी की बारी थीलेकिन अंधेरा होने की वजह से वो लोग खेलको पूरा नहीं कर सके उसके बाद दोनों नेखेल को अगले दिन सुबह जारी रखने काफैसला किया। अगली सुबह रविदास जी तोआये लेकिन उनके मित्र नहीं आये। वो लंबेसमय तक इंतजार करने के बाद अपने उसीमित्र के घर गये और देखा कि उनके मित्र केमाता-पिता और पड़ोसी रो रहे थे।
स्वभाव था रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव सभी जो भी है वो सभी आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।
कृष्ण,करीम,राम,हरि,राघव,
जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान,पुरानन,
सहज एक नहिं देखा।।
रविदासजी के कुछ सामाजिक मुद्दे
उन्हें भगवान् ने पृथ्वी पर असली सामाजिक और धार्मिक कार्यों को पूरा करनेके लिए भेजा था और मनुष्यों द्वारा बनाये गए सभी भेदभावों को दूर किया जा सके। गुरु रविदास जी को कर्म के प्रति महान कार्यों के लिए जाना जाता है।
उनके समय में दलित लोगों को जो आज sc st obc है उनको सवर्णो के दुआरा बहुत ही ज्यादा नज़रअंदाज़ किया जाता था और उन्हें समाज में अन्य जाति के लोगों सेदूर किया जाता था। उन्हें मंदिरों में पूजाकरने के लिए नहीं जाने दिया जाता था और बच्चों को स्कूलों में भी भेद भाव किया जाता था।
ऐसे समय में गुरु रविदास जी ने दलित समाज के लोगों को एक नया अध्यात्मिक सामाजिक सद्भाव पूर्ण सन्देश दिया जिससे की वो इस तरीके की मुश्किलों से लड़ सकें।
सम्पूर्ण जीवन मे रविदास जी ने सामजिक सजगता सफलता और अंधभक्ति,पाखण्ड,अन्धविस्वास मूर्ति पूजा का विरोध और गलत बताते रहे,,
आज के आधुनिक समय मैं भी रविदास जी के रचित पद मानव समाज को ज्ञान और सबल राह प्रदान करते है,
आज रविदास जी का ज्ञान और मार्ग सभी वर्ग का मार्गप्रस्थ और ज्ञान की ज्योति जगाये हुए है,,,
इस आधुनिक समय मैं भी उनके पद हमे अंधेरे से उजाले का भास कराते है,,
ऐसे सन्त शिरोमणि को मेरा सत सत नमन वंन्दन जो हमारे कुल को कांतिबान किये हुए है,,,
मानक लाल मनु,,,,??