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25 Jun 2022 · 1 min read

💐नाशवान् इच्छा एव पापस्य कारणं अविनाशी न💐

स्वहृदयेन कान्चित् असाधु न मन्यते।केषान्चित् निकृष्ट: न सोचयति।केषान्चित् निकृष्ट: न करोति।एषः नियमं ग्रहणं करोतु तु भवतः सर्वाणि दुर्गुणाणि नश्यष्यन्ति।येन भवन्तः परमलाभ: भविष्यति।सर्वेषां अन्तः जीवात्मा ईश्वरस्य अंशः।ईश्वरस्य अंशः निकृष्ट: न भवितुं शक्नोति।शरीरे अहंता-ममता करणेन दुर्गुणाणि आगच्छन्ति।निन्दा स्व उत्पन्नं च नष्ट: भवति आगन्तुक: च।स्तुति: स्वतः स्वाभाविक: च।सर्वथा दुराचारी कः चित् भवितुं न शक्नोति।कस्मिन्चित् सर्वथा सद्गुण-सदाचार तु भवितुं शक्नोति।परं सर्वथा दुर्गुणं-दुराचार: न भवितुं शक्नोति।मनुष्य: सर्वथा सत्यवादी तु भवितुं शक्नोति।परं सर्वथा मिथ्यावादी न भवितुं शक्नोति।
नाशवान् इच्छा एव पापस्य कारणं अविनाशी न।

©®अभिषेक: पाराशरः

Language: Sanskrit
447 Views
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