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27 Jan 2022 · 2 min read

?कैसे कैसे कलमकार?

डॉ अरुण कुमार शास्त्री

एक अबोध बालक ? अरुण अतृप्त

?कैसे कैसे कलमकार?

छोड़ कर के ग्रुप पुराना

आगे बढ़ जाते हैं

इक टुकड़ा सम्मान

पत्र की खातिर

नये समूह में डेरा जमाते हैं ।।

चार दिन रह कर वहाँ

फिर नया तलाशा करते हैं

ये औने पौने कलमकार भी

अधकचरे होते हैं ।।

एक लिख लेते हैं रचना

चौदह जगह पर हैं छापते

झूठी वाह वाह के दीवाने

न जाने कहां कहां

धूल हैं गे फाँकते ।।

जिस तिस की सुनते हैं डांटे

और हांजी हाजी करते हैं

छोड़ कर सम्मान असली

जी हजूरी करते हैं ।।

छोड़ कर के ग्रुप पुराना

आगे बढ़ जाते हैं

इक टुकड़ा सम्मान

पत्र की खातिर

नये समूह में डेरा जमाते हैं ।।

चार दिन रह कर वहाँ

फिर नया तलाशा करते हैं

जहां मिले सम्मान

वहीँ हम धूना रमाया करते हैं ।।

बार बार पुराने समूह के

एडमिन हमको बुलाते हैं

कभी नेट कभी सेल हेंग का

हम बहाना तब बना ते हैं ।।

ल ला ला ल ल ल ला

मजबूरियां किसी की

ऐसी भी हो न जाएं ख़ुदा

पाते थे वाह वाह दिल की जिनसे

उन्हें क्यों हम भूल जायें ख़ुदा ।।

छोड़ कर ग्रुप ये

छोड़ कर के ग्रुप पुराना

आगे बढ़ जाते हैं

इक टुकड़ा सम्मान

पत्र की खातिर

नये समूह में डेरा जमाते हैं ।।

चार दिन रह कर वहाँ

फिर नया तलाशा करते हैं

आदमी की फितरतन

आदत ही ऐसी हो गई

भूल बैठा प्रेम प्यार को

अब तो लानत हो गई ।।

भ्राता भगिनी कह कर

जिन्हें बुलाया जाता था

प्यार से था जिनका नाता

उनके ग्रुप में लिखना अब तो

इक अदावत हो गई ।।

चार थे ले दे के समहू जो

प्यार से थे चल रहे सभी

कलमकारों की खूबसूरत

कलम पे मर ते रहते थे सभी

मतला मिसरा बा अदब से

कह कर ग़ज़ल थी

लिखी जाती कही ।।

थी बाक़ायदा, चौपाल

दोहे चौपाई की उर्स में

रवायतें भी गुनी जाती थी वहीं

तयशुदा थे नकुल बेकल

अब सभी नौचंद अंकल

और नाती हो गये ।।

छोड़ कर के ग्रुप पुराना

आगे बढ़ जाते हैं

इक टुकड़ा सम्मान

पत्र की खातिर

नये समूह में डेरा जमाते हैं

चार दिन रह कर वहाँ

फिर नया तलाशा करते हैं ।।

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 1 Comment · 229 Views
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