ज़िन्दगी लाज़वाब,आ तो जा…
इश्क़ है ब़े-हिसाब, आ तो जा।
तुझपे लिख दूँ किताब आ तो जा।
अब नशा बस तेरा ही काफी है
छोड़ दी ले शराब, आ तो जा।
कितनीं कसमें थीं, कितने वादे थे,
कर लिया है हिसाब, आ तो जा।
बे रुख़ी, बे खुदी ये कब तक है
रख रखें हैं गुलाब, आ तो जा।
क्या बताऊँ मिज़ाज कैसे हैं ?
हर तरफ है अज़ाब, आ तो जा।
ज़िन्दगी की हरेक उलझन का
लिख रखा है जवाब, आ तो जा।
सब्ज़ गुलशन था और तू भी थी
कर मुक़म्मल ये ख़्वाब आ तो जा।
दर्द, आंसू, तड़प, घुटन सब है
ज़िन्दगी लाज़वाब, आ तो जा।
पंकज शर्मा “परिंदा” 🕊️