“स्वतंत्र” ( संस्मरण )
?”स्वतंत्र” ( संस्मरण )?
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मैं आरंभ से ही पारिवारिक माहौल में जीने में विश्वास
रखता हूॅं । बचपन में माता पिता का प्यार मेरे लिए
ख़ास मायने रखता था । पर परिस्थितियाॅं किस तरह
बदल जाती हैं….कम उम्र में ही कोई बालक अपने
माता-पिता और भाई-बहन से किस तरह दूर हो
जाता है, उसके दिलो-दिमाग पर क्या गुजरती है…
अपनों से दूर रहकर भी, स्वतंत्र होकर भी वह किस
तरह अपनों से दूर रहने में मुश्किलों का सामना
करता है। ऐसी ही कुछ बानगी खुद से संबंधित एक
छोटे से संस्मरण के माध्यम से मैं आप सब के समक्ष
प्रस्तुत कर रहा हूॅं ।
बात सन 1978 ई० की है। मेरे पिताजी का तबादला
कटिहार के फलका प्रखंड से कटिहार प्रखंड हो चुका
था। मैं लगभग दस वर्ष का था । कटिहार शहर में
सातवीं कक्षा में किसी अच्छे हाई स्कूल में मेरे
नामांकन की तैयारी चल ही रही थी । तब तक फलका
प्रखंड के राजकीय बुनियादी विद्यालय के प्रधानाचार्य
द्वारा मेरी राष्ट्रीय छात्रवृत्ति में सफल होने का संदेश
भेजा गया। इसीलिए मेरा नामांकन कटिहार शहर के
बदले कटिहार के मनिहारी प्रखंड (छात्रवृत्ति में सफल
छात्रों के लिए सरकार द्वारा निर्धारित विद्यालय) में
लिया जाना निश्चित किया गया। वहाॅं मैं अपने पिताजी
के साथ नामांकन हेतु गया । घर से प्रस्थान के वक्त
मेरा मन बहुत उदास था, हालांकि मुझे अपने पिताजी
का साथ था । मनिहारी में उक्त कक्षा में नामांकन करा
एवं विद्यालय के छात्रावास में मुझे सीट दिलवाकर
पिताजी लौट आए । एक नया स्थान था मेरे जीवन में,
काफ़ी स्वतंत्रता थी ( पर छात्रावास के नियमों के
अधीन था ) पर मेरा मन पढ़ाई के साथ-साथ अपने
घर पर ही लगा रहता था। समय पर उठना-बैठना,
विद्यालय आना-जाना, छात्रावास के नियमों के अधीन
समय पर भोजन करना और नियमित अध्ययन करना
पड़ता था । संध्या समय में खेलकूद हेतु एक-डेढ़ घंटे
का समय मिल जाता था। वहाॅं विद्यालय के कैम्पस
में स्थित बड़े से मैदान में सभी छात्र गण विभिन्न तरह
की क्रीड़ा में लिप्त रहते थे। फिर संध्या में छात्रावास
में नियमानुसार अपने क्रियाकलाप में लग जाते थे ।
पर बीच-बीच में अपने घर के बारे में भी सोचने पर
मजबूर थे । इसीलिए छात्रावास अधीक्षक से अनुमति
लेकर हर शनिवार को विद्यालय से लौटने के पश्चात
अपने घर ( कटिहार ) का रुख कर लेते थे और पुनः
सोमवार की सुबह वापस मनिहारी अपने छात्रावास
पहुॅंच जाते थे।
घर से दूर थे, काफ़ी स्वतंत्र थे, पर….छात्रावास के
नियमों के अधीन थे, हर नियम का अनुपालन करते
थे । घर से दूर रहकर भी, स्वतंत्र रहकर भी अपने
माता-पिता, भाई-बहन के काफ़ी निकट थे !!!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 09/01/2022.
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