️पक्षी/ मोर?
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घिरे है काले मेघा ,घन गरजे घनघोर ।
पंख पसारे नाच उठे, वन के सारे मोर ।
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विचलित है मन बावरा,याद आये चितचोर ।
जब-जब जंगल में नाचे, पिया मिलन में मोर ।
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चाल, वर्ण, चंचल काया,इन्द्रधनुष सा रंग ।
धरे कलँगी माथे पर, शोभे सतरंगी अंग ।
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घुम्मकड़ी मन बावला, करता यही चिन्तन
पंछी सम जीवन होता ,नापता नील गगन
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शक्ति ,मति ,धन, वैभव पर, क्यों करता अभिमान ।
मनवा तजकर अहम को, उड़ जा विहंग समान ।
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पंछी उड़ा आकाश में , हुई सुबह से शाम ।
दाना खोजत दिन गया, मिला नहीं आराम ।