【【◆◆भुचाला—मधुशाला◆◆】】
अंग अंग मे जिये जवाला,
खोलू जब मैं मधुशाला.
इश्क़ रोग ने ऐसा मारा,
जैसे दिल पे गिरा हिमाला.
आँख से रुके न भारी वर्षा,
अंग अंग बना बिजली का
निवाला.
कोरी तन्हाई बरस रही,धोखा दे
रहा दिन का उजाला.
टूट टूट के बिखरा है, ये दिल है या
कोई मोतीयन की माला.
कैसे संभालूं खुद को,लूट ले गयी
मुझको एक कमशीन सी बाला.
उठूँ तो रात हो जाये जागूँ तो अंधेर,
कैसा कहर किया प्रिय मुझपर,
रुकी ज़िन्दगी की चाला.
बहका बहका सा अमन फिरे,
डर डर के डराए ख्याला.
थर थर काँपे पैर मोरे,जैसे ज़हर
साँप ने डाला.
नीला हो गया जिस्म सारा,
निकला दवा दिवाला.
सुने पड़ गये रोम रोम,
ये कैसा करंट तन से निकाला.
मति मारी हमरी भरी जवानी,
कैसा ये रोग निराला.
धरती हिले आसमां हिले,
ये कैसा आया भुचाला,
ये कैसा आया भुचाला।