【【मज़दूर】】
एक सुकून की तलाश में निकले थे
अपनों से मिलने की फ़िराक में निकले थे।
मालूम न था सफ़र अधूरा रह जाएगा
रास्ते भी मज़दूरों के ख़िलाफ़ में निकले थे।
लिए रोटी का टुकड़ा हाँथों में
निकले थे अँधेरी रातों में।
सर पर भारी समान का बोझ था
और करते भी क्या वो इन हालातों में।
नही दिया कुछ सुझाई उन्हें
बस मंज़िल दी दिखाई उन्हें।
थक हार कर सो गए पटरी पर
फिर आवाज रेल की ना आई उन्हें।
पड़े पड़े ही सो गए वो
जीवन से हाथ धो गए वो।
अपनो से मिलने आए थे
अपनों से ही दूर हो गए वो।