【【{{{{बेवफ़ाई}}}}]]
ठंडी तासीर की मोहब्बत थी धूप में किनारा कर गयी,
उस शख्स की नादानी मेरे गमों को आवारा कर गयी.
उसने तो ढूंढ ली एक छाँव सुकून की,
मेरे तपते कदमों को वो नकारा कर गयी।
बर्दाश्त न हुआ उस से एक धूप का सितम,
हाथ पकड़ बादल का,मुझको बेसहारा कर गयी।
रंग-ए-मिजाज़ कैसे बदलता है गर्मी में हुस्न का,
उसकी बेवफाई सारा आसमान काला कर गयी।
बिखर गए हम तो पतझड़ के पतों के जैसे,
जला जला के मुझको वो खुद में उजाला कर गयी।