✍️….और क्या क्या देखना बाकी है।✍️
✍️….और क्या क्या देखना बाकी है।✍️
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अभी तुम जरासा ठहर जाओ नज़ारे देखना बाकी है
यहाँ लाशों का पड़ा अंबार है मजारे देखना बाकी है
खुला है आसमाँ तेरे लिए बस उड़ने का हौसला रख..
अब साजिशों में ओर कितने है सितारे देखना बाकी है
संभल कर चल कदमो के नामोनिशां मिले ना कही..
पथरीले रास्तो पे ओर कितनी है कतारे देखना बाकी है
समा लेना आँखों में जो लहु के मंझर तूने यहाँ देखे है..
इस दयार के निगेहबान के कुछ इशारे देखना बाकी है
जहरीली सियासत में अमृतकाल का जश्न मना रहे है..
पर यहाँ कितने मासूम प्यास के है मारे देखना बाकी है
अभी तो मज़हबी रंग चढ़ेंगे मंदिर मस्जिद की दीवारों पे
‘अशांत’ अभी कितने ढ़हा देंगे वो मीनारे देखना बाकी है
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©✍️’अशांत’शेखर✍️
17/08/2022