✍️ख़्वाबो की अमानत✍️
✍️ख़्वाबो की अमानत✍️
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मेरी कलम के
नोंक पर जमी एक बूंद
सियाही भी तेरी
नेकियां नवाझती
गर अच्छाईयों की
कुछ तो तुझमे बात होती।
दो वक़्त की थाली
का हिसाब मेरा भूखा
पेट क्या देता..?
तेरी तीखी ज़बान
अपने नन्ही जान की
झूठी कसमे ले रही थी
मेरे ईमान ने हार
को स्वीकार किया
और तेरा घमंड जीता..!
मैं पगली
इस बात को समझ नहीं पायी
परवरिश करनेवाले
ममता के हाथ
और ताउम्र लहु का पसीना
बहानेवाले वो बंझर पाँव घिसते रहे
उसकी ख़ुशहाली के लिये
और वो बेदर्द पत्थरदिल
चला गया रौंद कर उनके
मासूम ख़्वाब…!
मैं तो फिर भी दूसरे की ही अमानत थी..!
पर मेरी बरसो
के ख़्वाबो की अमानत वो लें गया।
अपने कलेजे पे
बेशर्मी का पत्थर रखके वो जी गया।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
03/07/2022