✍️सरहदों के गहरे ज़ख्म✍️
✍️सरहदों के गहरे ज़ख्म✍️
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जिंदगी के बाकी बचे गिले शिकवे सुन भी लेते हम
अगर साथ होती वो उसका कहां मान भी लेते हम
पराये की तरह गुजरती है वो मेरे मायुस कूचे से
अंजानी सी है वो वर्ना उसका हाल जान भी लेते हम
ये खाली कमरे टकटकी लगाये रहते है खिड़की पर
टूटी दीवार रास्ते पे ना होती घर को झाँक भी लेते हम
साहिल पर अक्सर लहरों को सर पटकते देखा है
गर बस में होता समंदर की छानबीन कर भी लेते हम
सरहदों के गहरे ज़ख्म कभी हमें मयस्सर नहीं हुए
वर्ना बिछड़ने के दर्द गझल में बयान कर भी लेते हम
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✍️”अशांत”शेखर✍️
10/07/2022