✍️मुकद्दर आजमाते है✍️
✍️मुकद्दर आजमाते है✍️
………………………………………………………………//
ये बेजुबाँ दरख्ते अंदर ही अंदर रोज सुलगते है
बुझाकर पत्तों की आग ये शोलों सा दहकते है
धुँवा है बाहर,कोई लपटे शाख़ में भभकती नहीं
ये जड़ो में उबाल लेके खुदके छाँव में धधकते है
आशुफ़्ता मौसम में तूफाँ के अरमान परेशां से है
इन हवाँओ के बूलंद इरादे मुरशद तन्हा बहते है
अंधेरो में गुमशुदा है मुस्तैद काफ़िला जुगनु का
और रोशनी में भी ये दीमकों का सितम सहते है
वक़्त की करवट में दुनियां की हर चीज़ फ़ानी है
चलो ‘अशांत’ हम भी आज मुकद्दर आजमाते है
………………………………………………………………//
✍️”अशांत”शेखर✍️
06/07/2022
*दरख्ते- पेड
*आशुफ़्ता = बौख़लाया हुआ
*फ़ानी-नश्वर
*मुरशद-सीधा रास्ता
*मुस्तैद-तत्पर,तैयार