✍️बचा लेना✍️
✍️बचा लेना✍️
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कुछ रंजिशें चली है ये मंदिर बचा लेना
कुछ साजिशें हुई है मस्ज़िद बचा लेना
अपने मकाँ को बाद में तुम सजा लेना
पहले इस बरस के बाढ़ से बचा लेना
तुमने क्यूँ समंदर माँगा अश्क़ रख लेते
अब तूफाँ से इन कश्तियों को बचा लेना
पुरानी रजवाड़ो की छाँव में पेड़ सुस्त है
उन नन्हें पौधों को बरगद से बचा लेना
कुछ साँसे कम पढ़ रही है इन हवाओँ में
इन जहरीले धुँए से मौसम को बचा लेना
तुम चल न पाओगे दूर उस मंझिल तक..
इन पथरीले राहों से सफर को बचा लेना
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✍️”अशांत”शेखर✍️
18/07/2022