✍️पढ़ रही हूं ✍️
मशरूफ सी हूँ उलझे से ख्यालातों में,
नींद को बस में किये जाग रही हुँ रातों में,
ये इश्क नहीं इसे इश्क़ न समझना,
पढ़ रही हुँ गुम हुँ कहीं किताबों में।
✍️वैष्णवी गुप्ता
कौशांबी
मशरूफ सी हूँ उलझे से ख्यालातों में,
नींद को बस में किये जाग रही हुँ रातों में,
ये इश्क नहीं इसे इश्क़ न समझना,
पढ़ रही हुँ गुम हुँ कहीं किताबों में।
✍️वैष्णवी गुप्ता
कौशांबी