✍️जिंदगी का बोझ✍️
✍️जिंदगी का बोझ✍️
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छूट रहा है जो कुछ
हाथ आने से पहले..
दिल तो बेसबब ही
फ़िक्र में पड़ा है..
जिंदगी बहते रहती है
उसे बहने दो..
ज़ेहन क्यूँ बेवज़ह बेचैनी
के उलझन में पड़ा है..
दो मुठ्ठी में जितना समाया
उतना ही तो अपना समझा है
बाकी बचा वो तो कर्ज है ..!
अब जिंदगी चढ़ा रही है बोझ..
पीठ पे लादके फिर भी
ज़िस्म बाज़ार में खड़ा है..
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©✍️’अशांत’ शेखर✍️
06/08/2022