✍️जिंदगी के अस्ल✍️
✍️जिंदगी के अस्ल✍️
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इस दर्द की इंतिहा है मैं बाहर फटा जा रहा हूं
कही से भी सी लो मुझे,अंदर फटा जा रहा हूं
क्या तेरी ये फ़ितरत कोई अनबुझी पहेली थी
बिन सुलझे ही मैं तेरी कहानी रटा जा रहा हूं
वफ़ा रस्मे प्यार क्या क्या भरा था दामन में तेरे
सबकुछ लौटाकर मैं खुद में ही घटा जा रहा हूं
जैसे एक उफनते दरिया के मोड़ का साहिल हूं
अपने ही अश्कों की बाढ़ से मैं कटा जा रहा हूं
खुदगर्ज़ दिलो की पहले से ही तंग थी गलियां
इश्क़ के बदनाम रास्तो से मैं सिमटा जा रहा हूं
‘अशांत’कही अक़्ल की इबारत लिखी गयी है
मैं जिंदगी के अस्ल का पन्ना पलटा जा रहा हूं
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✍️”अशांत”शेखर✍️
21/07/2022
*इंतिहा-चरमसीमा
*इबारत- बोली भाषा,शैलीरचना
*अस्ल – मूल, नींव, मूलतत्त्व