✍️जमाना नहीं रहा…✍️
✍️जमाना नहीं रहा…✍️
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साथ किसीके दर्द खुशियाँ
बाटने का जमाना नहीं रहा ।
डाकियों के हाथ से खत
पहुँचाने का जमाना नहीं रहा ।
समझौते की यहाँ जिंदगी
समझने का जमाना नहीं रहा ।
मेरा मैं तेरा तू सिर्फ खुदगर्ज़ी
अपनाने का जमाना नहीं रहा ।
चंद उलझने है रिश्तों की…
सुलझाने का जमाना नहीं रहा ।
आँखे देखती उजड़े मकानो को…
संवारने का जमाना नहीं रहा।
रूठकर दूर चले जाये कोई…
मनाने का जमाना नहीं रहा।
दिल से दिल के कितने फासले,
मिटाने का जमाना नहीं रहा ।
अब वो मैक़दे में खड़े ही पीते है
बैठने का जमाना नहीं रहा।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
17/06/2022