✍️चाबी का एक खिलौना✍️
✍️चाबी का एक खिलौना✍️
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इँसा जो देखता है वो हर ख़्वाब तो सलोना है
पर ये इँसा वक़्त के चाबी का एक खिलौना है
ख्वाइशों के मेलो में सपनों के बाजार सजे है
कैसे छूते हम तो बाहर है,वो बंद शामियाना है
कहाँ सिकंदर की चली है हुकूमत दुनिया पर
यहाँ कौन है ओरोंके मर्ज़ी का मालिक बना है
कैसे मिलाते हाथ कोई हम से मुट्ठी तो बंद थी
झूठे उम्मीदों में रहे बस यही तो हमारा रोना है
‘अशांत’ चल कही सुकूँ की हम छांव ढूंढते है
अश्क़ सोये है पलकों में आँखों का बिछाना है
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✍️”अशांत”शेखर✍️
16/07/2022