✍️तन्हा खामोश हूँ✍️
✍️तन्हा खामोश हूँ ✍️
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कोई कैसे पढता मुझे
मैं तो एक पुराना सा गुमनाम खत हूँ
मैं पहुँचता कैसे उनके पते से अंजान हूँ
कोई कैसे चाहता मुझे
मैं एक दर्द-ए-दिल की आधी दास्तां हूँ
मैं अपने ही कलम का अधूरा किस्सा हूँ…
कोई कैसे ढूँढता मुझे
मैं तो अपने ही शहर में अजनबी हूँ
मैं ना अब किसी भीड़ का हिस्सा हूँ …
कोई कैसे बुलाता मुझे
मैं तो अपनों की आवाज़ से गुमशुदा हूँ
मैं बस अपने ही अंदर तन्हा खामोश हूँ …
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✍️”अशांत”शेखर✍️
17/07/2022