✍️कोई नहीं ✍️
ना जाने कैसा सफर है ज़िंदगी का,
मिलते हज़ारों है पर पास कोई नहीं,
बस झूठी भीड़ हैं चारों तरफ़,
कितना अजीब है ना,
चलता कारवाँ है पर साथ कोई नहीं।
✍️वैष्णवी गुप्ता
कौशांबी
ना जाने कैसा सफर है ज़िंदगी का,
मिलते हज़ारों है पर पास कोई नहीं,
बस झूठी भीड़ हैं चारों तरफ़,
कितना अजीब है ना,
चलता कारवाँ है पर साथ कोई नहीं।
✍️वैष्णवी गुप्ता
कौशांबी