✍️कोई मसिहाँ चाहिए..✍️
✍️कोई मसिहाँ चाहिए..✍️
……………………………………………………………………//
कही किस्से,अफसाने,दास्तानें तो है सुनाने के लिए
मगर इसमें मेरा कुछ नहीं है आपको मनाने के लिए
तेरी लाख मेहेरबानीयों से ये फ़कीरी कम नहीं होगी
मेरे हाथों में सिर्फ लकीऱे ही तो है दिखाने के लिए
रंज-ओ-ग़म तन्हा पहलु में बैठे है जैसे मेरे हमसाये..
चलो बेगाना दर्द ही सही है तो मेरा कहलाने के लिए
क्या ख़ाक है वो जिंदगी जिसमे कोई टकराव ना हो
हमने दुश्मन भी नश्तर-फ़रोश रखे है चुभने के लिए
तेरा रसूख़ तेरा हि रोब ये गूँगी अवाम बहरी भी तो है
शोक-ए-इंतिहा में कोई जिंदा ही नहीं सताने के लिए
एक पहाड़ दरिया में गिरा अपने थे उस पार ठहर गये
इस छोर तो मैं और मेरा अक़्स है गम जताने के लिए
अशांत’सिर्फ आँखे खुली है जिस्म तो अधमरे सोये है
अब कोई मसिहाँ चाहिए मुर्दा नींद से जगाने के लिए
…………………………………………………………………..…//
©✍️”अशांत”शेखर✍️
30/05/2022