मेरी हर कविता में सिर्फ तुम्हरा ही जिक्र है,
- नियति के लिखे को कोई टाल नही सकता -
मैं तो ईमान की तरह मरा हूं कई दफा ,
लाल और उतरा हुआ आधा मुंह लेकर आए है ,( करवा चौथ विशेष )
हमारे हौसले तब परास्त नहीं होते जब हम औरों की चुनौतियों से ह
बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
sp 52 जो ब्रह्म कमंडल से निकली
ज़रूरत मतलब लालच और रिश्ते
गीत- ये हिंदुस्तान की धरती...
जो लोग दूसरों से जलते हैं,🔥🔥🔥
छंद मुक्त कविता : बुद्धि का उजास
*मन के भीतर बसा हुआ प्रभु, बाहर क्या ढुॅंढ़वाओगे (भजन/ हिंदी
"सत्य"
Dr. Reetesh Kumar Khare डॉ रीतेश कुमार खरे
लगाओ पता इसमें दोष है किसका
*आज बड़े अरसे बाद खुद से मुलाकात हुई हैं ।