◆ बेटी ◆
(१)
कुलों का नाम जो करती वही बेटी कहाती है।
जन्म इंसान को देती वही बेटी कहाती है।
पीहर में झेलती हर कष्ट पर कहती नहीं कुछ भी,
सभी का जीत दिल लेती वही बेटी कहाती है।।
(२)
मिटा देती जो बैरों को वही बेटी कहाती है।
मिलाती दिल से दिल सबके वही बेटी कहाती है।
जो माँ अरु बाप के कष्टों का हरपल ध्यान रखती है,
झेलती भ्रूणहत्या को वही बेटी कहाती है।।
(३)
खुशी देती है सबको खुद से जो गम को उठाती है।
नये जीवन की आशा को हर एक दिल में जगाती है।
छोड़ बेहाल अपनों को सजाती गैर का आँगन,
रखे लाखों दर्द दिल में वही बेटी कहाती है।।
(४)
जन्म से पहले दुख झेल कर जो भू पे आती है।
कली से फूल बनती है सभी का मन लुभाती है।
जगाती ‘आस’ जीने की मनुज अरु देव के उर में,
खुशी बन कर जो आती है वही बेटी कहाती है।।
कौशल कुमार पाण्डेय “आस”
३० मार्च २०१८ / शुक्रवार।