■ हिंदी ग़ज़ल / वर्तमान
■ हिंदी ग़ज़ल / वर्तमान
【प्रणय प्रभात】
★ मुँह खोल रहा है वर्तमान,
कुछ बोल रहा है वर्तमान।।
★ कितना खोया कितना पाया।
यह तोल रहा है वर्तमान।।
★ सुंदर अतीत की गलियों में।
फिर डोल रहा है वर्तमान।।
★ भावी को रेंगने नए रंग।
कुछ घोल रहा है वर्तमान।।
★ अनमोल रहा जिनका अतीत।
अनमोल रहा है वर्तमान।।