■ समसामयिक रचना■
#तेवरी (देसी ग़ज़ल)-
■ भेड़-भेड़िए वाला प्यार।।
【प्रणय प्रभात】
सब बेमानी सब में सार, छोडोव्यार!
एक बात के अर्थ हज़ार, छोड़ो यार!!
कितनी खाई कितने खंदक खोदोगे?
चीख रही है नई दरार, छोड़ो यार!!
तीखापन लहजे में अच्छी बात नहीं।
चाकू-छुरियां सब बेकार, छोड़ो यार!!
कारोबारी से लेकर सैलानी तक।
इस मेले में सब बटमार, छोड़ो यार!!
सब पटेल हैं सभी चौधरी कस्बे में।
घर-घर में हैं मनसबदार, छोड़ो यार!!
चार लोग हैं घर के चारों कोनों में।
खाक़ मज़ा देगा त्यौहार, छोड़ो यार!!
कोई मुहब्बत में तो कोई नफ़रत में।
सारे ज़हनों से बीमार, छोड़ो यार!!
पुट्ठों के बल बैठे हैं लाचार बने।
बचा न कोई पायेदार, छोड़ो यार!!
चार दिनों का सारा जादू चमड़ी का।
भेड़-भेड़िए वाला प्यार, छोड़ो यार!!
कौन लगे लाइन में धक्के खाने को।
सौ रोगी हैं एक अनार, छोड़ो यार!!
जड़ से लेकर टहनी शाखों पत्तों शाखों तक।
सब के सब हैं खरपतवार, छोड़ो यार!!
ठूंस चुके अब औरों को चुग लेने दो।
बार-बार जूतम-पैजार, छोड़ो यार!!
कोठी-बंगले गाड़ी-घोड़े किश्तों पर।
सांसें मिलती नहीं उधार, छोड़ो यार!!
अगली दस पीढ़ी का बंदोबस्त हुआ।
भिंचे गले में फंसी डकार, छोड़ो यार!!
पीछे देखो हाथ बांध कर लाख खड़े।
तुम ही नहीं अलम्बरदार, छोड़ो यार!!
राम बिचारे फिर केवट को ढूंढ रहे।
अब नैया मत राम-भरोसे, छोड़ो यार!!
क्या कर लेगी पत्थर वाली बस्ती में।
शीशे वाली हर दीवार, छोड़ो यार!!
आओ, हम-तुम मिल के दरबारी गाएं।
इस मौसम में राग़-मल्हार, छोड़ो यार!!
बाहर घण्टा जहांगीर का टँगा मगर।
अंदर तुगलक का दरबार, छोड़ो यार!!
●सम्पादक●
(न्यूज़&व्यूज़-मप्र)