■ समय की पुकार…
#साल_चुनावी_है…!
■ अब की बार : आर या पार…
【प्रणय प्रभात】
“सत्ता भीड़ की चेरी है और सियासत की सौगात चुनावी आंधी की कैरी (आम का बचपन) है।” फिर 5 साल किस्मत में बस गुठलियों की ढेरी है। फोकट के चक्कर में कैरी ज़्यादा खाओगे तो अपने ही दांत खट्टे कराओगे। खट्टे दांतों से क्या भट्टे खाओगे…?
इसलिए, आज से ही सारे रट्टे-सट्टे त्यागो। अब की बार दुपट्टे नहीं पट्टे मांगो। वो भी ऊसर नहीं उर्वर ज़मीन के। मतलब बिन तिल्ली की रेवड़ी नहीं पूरी रोज़ी-रोटी।
बज़्ट और गजट देखो दिमाग की बत्ती जला कर। ताकि थक न जाओ रेत में चप्पू चला कर।।