■ शुभ देवोत्थान
#मंगलकामनाएं
■ अनूठी कामना : देव-जागरण व दानव-शयन की।। की।
【प्रणय प्रभात】
“लोक-मंगल और विश्व-हित के लिए देवगण जागृत हों और दानव सदा-सर्वदा के लिए चिर-निद्रा में सो जाएं।”
आज कार्तिक शुक्ल एकादशी के पावन पर्व पर यही हैं हमारी कामनाएं। देव प्रबोधिनी एकादशी (देवउठान ग्यारस) का इस से श्रेष्ठ अभिप्राय और मंतव्य हो भी नहीं सकता, कि ईश्वरीय अंश मानव में देवत्व का जागरण हो और दानवता, पैशाचिकता का सर्वनाश।
रहा प्रश्न मांगलिक आयोजनों का, तो वो स्वतः होने लगेंगे। घर-परिवार, समाज और देश में ही नहीं, समूचे संसार में।
सागर रूपी मानस मंथन का सार भी यही है। गरल का निदान होगा तब अमृतपान का सौभाग्य मिलेगा। प्रकाश का प्राकट्य अंधकार के गर्भ से ही है। एक जीव के जन्म की तरह।
आइए! आज इसी मनोरथ के साथ देवगणों से मानवीय अंतःकरण में जाग उठने की मनुहार करें। सृष्टि संचालक देवगणों के शयन के मिथक को विस्मृत करें आज। सदा-सदा के लिए।
स्मरण रहे कि जीवंत और साक्षात देवों की सतत जागृति के साक्षी हम सब हैं। ऊर्जा, चेतना व प्रकाश देने के लिए सूर्य भगवान और मानसिक चंचलता के साथ शीतलता देने के लिए चंद्र देव का आगमन अनवरत होता है। पवन देव हमें प्रतिक्षण प्राणवायु प्रदान करते हैं। आहार अग्निदेव और तृप्ति वरुणदेव के माध्यम से नित्य के उपहार हैं।
जन्म-मरण के मध्य पालन-पोषण और क्रमिक विकास अहर्निश होता है। माता-पिता, गुरुजन, शिक्षक, चिकित्सक, मार्गदर्शी पग-पग पर जीवंत व सक्रिय रहते हैं। वृक्ष और वनस्पतियां अपनी कृपा नियमित रूप से हम पर बरसाते हैं। रत्नगर्भा सागर हो या जलदायिनी सरिताएं, अपना प्रवाह बनाए रखती हैं। निर्झरों के कल-कल निनाद में कभी ठहराव नहीं आता। फिर कैसे और क्यों मानें कि देवगण शयन को चले गए थे?
वस्तुतः देव-शयन और चौमासे की धार्मिक मान्यता ऋतु-परिवर्तन और प्रकृतिजनित बाधाओं की प्रतिकूलता को सकारात्मक भाव के साथ स्वीकार करने की प्रेरणा से जुड़ी है। ताकि वर्ष का एक तिहाई भाग हम बाधाओं के बीच पुण्य-कार्यों व धर्म जागरण (चातुर्मास) में व्यतीत करें। आहार, विचार और नित्य व्यवहार को प्रकृति के अनुकूल बनाएं। नई चेतना व ऊर्जा का संचय करें और शेष आठ माह आनंद के साथ बिताएं। कुल मिला कर प्रतिकूलता से अनुकूलता के बीच की एक निर्धारित अवधि ही निषिद्ध काल है। जिस पर इस पर्व के साथ विराम लग गया है।
संकेत गाजे-बाजे, धूम-धड़ाके ने दे दिया है। लोकमंगल की प्रतीक शहनाई के स्वर नगाड़ों के संरक्षण में गूंज उठे हैं। नूतन गृहस्थ-आश्रमों की स्थापना के नवीन सत्र का श्रीगणेश हो चुका है। मदमाते परिवेश में हर्ष व उमंग का मिलन हो रहा है। हम सब शुभ व मंगल के भावों के साथ मोदमयी प्रसंगों के साक्षी बनने जा रहे हैं। हमारे मन, वचन और कर्म शुभ के प्रति आकृष्ट हैं। हमारी कामना, प्रार्थना जनमंगल के प्रति समर्पित हो चुकी है। यही तो है हमारे अस्तित्व में समाहित देवों का जागरण। सभी लिए शुद्ध व निर्मल अंतःकरण से अनंत मंगलकामनाएं। इस सद्भावना के साथ कि हम सबका जीवन जो “दंडक वन के सदृश है, ” प्रभु-कृपा से “पुष्प-वाटिका” में परिवर्तित हो। जीवन ही नहीं अंतर्मन भी। Tतभी सआर्थक होगी “सर्वे भवन्तु सुखिन:” की सनातनी अवधारणा। साकार होगी “वसुधैव कुटुम्बकम” की शाश्वत परिकल्पना। संभव होगी- “‘धर्म की जय, अधर्म का नाश, प्राणियों में सद्भावना और विश्व का कल्याण।” जय सियाराम, जय शालिगराम। जय मां वृंदा।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)