■ शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर एक विशेष कविता…
■ काव्यात्मक आह्वान शिक्षकों का…!
【प्रणय प्रभात】
“शिष्ट, क्षमतावान, कर्मठ।
जो रहे बस वो है शिक्षक।।”
गोद में निर्माण जिसके और पलती है प्रलय भी,
कर्म के सौरभ से जिसके मात खाती है मलय भी।
मन मरूस्थल में सुमन तक जो खिलाना जानता है,
जो विषम झंझावतों से पार पाना जानता है।
विश्व का जो मित्र बनकर राम को करता निपुण है
और कभी सांदीपनि बन कृष्ण में भरता सगुण है।
विष्णु शर्मा बन कभी जो पांच तंत्रों को सिखाता,
भीम को बलराम बनकर जो अभय-निर्भय बनाता।
शिव बने वरदान में सोने की लंका तक थमा दे,
हाथ में देकर परशु जो शिष्य चिरजीवी बना दे।
जब कभी चाणक्य बनकर के शिखाऐं खोलता है
नंद का साम्राज्य तब-तब थरथराकर डोलता है।
भूमिका शिक्षक की क्या है जानने की बात है ये,
है महत्ता ज्ञान की ही मानने की बात है ये।
आइए मिलकर करें संकल्पना कल्याण की हम,
छोड़कर विध्वंस का पथ सोच लें निर्माण की हम।
पान करना हो गरल तो भी ऋचाऐं मांगलिक दें,
आइए निज देश को हम संस्कारित नागरिक दें।।”
👌👌👌👌👌👌👌
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
#आत्मकथ्य –
(Y) मेरी यह कविता समर्पित है उन सभी शिक्षक मित्रों को जो शिक्षक का अर्थ और दायित्व समझते हैं।
■प्रणय प्रभात■