■ शर्मनाक सच्चाई….
■ शर्मनाक सच्चाई….
【एक बार फिर सामने आई】
बीते 31 दिसम्बर की रात जिस तरह से आतिशबाज़ी हुई, उसने साबित किया कि पर्यावरण प्रदूषण के नाम पर जितने भी विधान हैं वे केवल सनातन धर्म, संस्कृति और तीज-त्यौहारों पर लागू होते हैं। जो दुर्भाग्यपूर्ण, खेदजनक ही नहीं शर्मनाक भी हैं। क्या यही है सामुदायिक समानता? तय कर के बताएं दोगले उपक्रम, कि आगामी दिनों में जो धूम-धड़ाके होंगे वो जायज़ होंगे या नाजायज़??
【प्रणय प्रभात】