ज्वलंत संवेदनाओं से सींची धरातल, नवकोपलों को अस्वीकारती है।
दरवाज़ों पे खाली तख्तियां अच्छी नहीं लगती,
सोचा यही था ज़िन्दगी तुझे गुज़ारते।
किसी को अगर प्रेरणा मिलती है
क्या जाने दुनिया के चलन को सच्चा है
स्मृति ओहिना हियमे-- विद्यानन्द सिंह
दुश्मनों की कमी नहीं जिंदगी में ...
सावन भादो
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर