वक्त के साथ-साथ चलना मुनासिफ है क्या
बदलते परिवेश में रक्षाबंधन
जिस से रिश्ता निभाता रहा उम्रभर
आख़िर उन्हीं २० रुपयें की दवाई ….
गर तुम हो
मनमोहन लाल गुप्ता 'अंजुम'
आप हमको पढ़ें, हम पढ़ें आपको
क्या हो, अगर कोई साथी न हो?
समाधान से खत्म हों,आपस की तकरार
राखड़ी! आ फकत
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
हम इतने भी मशहूर नहीं अपने ही शहर में,