■ लघुकथा
#लघुकथा
■ टेंशन का ट्रांसफर
【प्रणय प्रभात】
अपने एक प्लॉट को थोड़े से झूठ के बूते 50 हज़ार रुपए ज़्यादा में बेच कर धूर्त हुकमचन्द फूला नहीं समा रहा था। अपनी यह सफलता छोटे भाई रामदयाल को बताते हुए वह प्लॉट खरीदने वाले सियाराम को अव्वल दर्ज़ का मूर्ख भी ठहरा रहा था। यह जाने बिना कि वही सियाराम बाहर खड़ा उसकी बात सुन रहा है।
बड़े दिल वाला सियाराम इस छोटी सी ठगी से ज़्यादा अपने ख़ास मित्र हुकमचन्द की धूर्तता से हतप्रभ था। उसने तत्काल दोनों भाइयों के सामने पहुँच कर ये कहते हुए धमाका सा कर दिया कि वह प्लॉट उसे हर क़ीमत पर चाहिए था और वो उसे पाने के लिए 5 लाख रुपए और भी दे सकता था। अपनी बात कह कर सियाराम वहाँ से चलता बना। एक रहस्य भरा सन्नाटा अपने पीछे छोड़ कर।
अब दोनों भाई ज़बरदस्त सदमें में हैं। उन्हें लग रहा है कि ठगी सियाराम नहीं उनके अपने साथ हुई है। दोनों यह सोचने में उलझे हुए हैं कि आखिर उस प्लॉट में ऐसा क्या था? जिसे वे गंवा बैठे।
उधर संतोषी और विवेकशील सियाराम को संतोष है कि उसने अपने टेंशन का सही समय पर सही जगह ट्रांसफर कर दिया। वरना उसे ख़ुद हुकमचन्द और रामदयाल की तरह अफ़सोस के नाले में गिरना पड़ता।।
★प्रणय प्रभात★
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