■ लघुकथा / लेनदार
#लघुकथा
■ चंपत हुई मुसीबत
【प्रणय प्रभात】
बाज़ार में भटकते रामदयाल को बहुत दिनों से बाबूलाल की तलाश थी। उससे उधार दिए हुए दस हज़ार रुपए जो वसूलने थे उसे। बीते तीन महीनों के लॉकडाउन ने वैसे ही कड़कनाथ बना रखा था रामदयाल को। एक दिन अचानक उसकी आँखों में चमक सी आ गई।
उसने देखा कि उसका कर्जदार बाबूलाल सामने से चला आ रहा है। पास आते ही दोनों की नज़रें मिलीं। लेनदार को सामने देख हक्का-बक्का बाबूलाल ने अचानक मुंह पर लगे मास्क पर मुट्ठी लगा कर ज़ोर-ज़ोर से खाँसना चालू कर दिया। तक़ाज़े के शब्द बेचारे रामदयाल के गले में ही घुट कर रह गए। उसने वायरस के डर से तुरंत कन्नी काट कर बग़ल से गुज़र जाने में ही ख़ैर समझी।
दूसरी ओर शातिर बाबूलाल कोरोना को मन ही मन धन्यवाद देता जा रहा था। जिसके वायरस ने उसे लेनदार की खरी-खोटी से पल भर में छुटकारा दिला दिया था। मन ही मन मुस्कुराते बाबूलाल ने पलट कर देखा तो पाया कि संक्रमण से डरा हुआ रामदयाल चंपत हो चुका था।
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■ प्रणय प्रभात ■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)