■ लघुकथा / अलार्म
#लघुकथा
■ ज़रूरत अलार्म की…
【प्रणय प्रभात】
उनका काम था एक बार मोटर चलाना और भूल जाना। फिर चाहे वाटर-टैंक की क्षमता के बराबर पानी नाली में बह जाए। कइयों ने पानी के सदुपयोग के बारे में समझाया। झूठी अकड़ ने समझने न दिया। समझ तब आई जब बिजली का बिल दोगुना आया। चपत से बचने के लिए वाटर-टैंक में अलार्म लगाया गया। जिसका काम था टैंक भरते ही शोर मचाना। टैंक भरने की ख़बर देना और मोटर बन्द करने की गुहार लगाना। अलार्म रोज़ अपना काम करता। आवाज़ मोहल्ले भर में गूंजने से अगले का रसूख बढ़ता। फिर भी ओव्हरफ्लो टैंक का पानी बेनागा देर तक सड़क व नाली का जलाभिषेक करता। खोजबीन की तो पाया कि परिवार बहरों का है। जिसके सदस्य मोटर बन्द करने की तरह कान में मशीन लगाना भूल जाते हैं। अब उन्हें ज़रूरत है कान में मशीन लगाने की याद दिलाने वाले अलार्म की। कभी बन कर बाज़ार में आ जाए तो बताना। ताकि बेचारे टैंक में लगे निरीह अलार्म की आवाज़ सुनी जा सके।