■ ये भी खूब रही….!!
■ धोड़ा में धूळ…!!
【प्रणय प्रभात】
आज कुछ ऐसा हुआ कि एक बेहद पुराना लतीफ़ा याद आ गया। पहले वही पेश करता हूँ। कवि सम्मेलन के मंच पर माइक के सामने खड़े कवि ने जेब से डायरी निकाली और कविता पढ़ना शुरू किया। जो कुछ इस प्रकार थी-
“कुर्ते चार, पजामें दो।
चार चादरें, साड़ी नौ।।
छह पतलूनें, दस खोली।
पंद्रह पर्दे, दस चोली।।”
श्रोता दीवाने हो गए। तालियां पिटने लगीं। वाह-वाह गूंज उठी। तभी कवि ने काव्यपाठ रोका। क्षमा मांगते हुए बोला कि- “माफ़ करें। आज कविता की जगह धोबी के हिसाब-किताब की डायरी आ गई ग़लती से।
सुनने में आया है कि आज ऐसा ही कमाल एक बार फिर हो गया। जादूगर “गलघोंट राजस्थानी” सदन में चुनावी साल के जादुई बज़ट के बजाय पिछले बरस का गज़ट उठा लाए। आधा बांच भी डाला। तब समझ आया कि बड़बड़ के चक्कर में गड़बड़ हो गई। एक साथ पिटी तालियां और भद। पायलट जी दिखे गदगद। कर गई बद्दुआएँ असर। नहीं बची कोई कोर-क़सर। विपक्षियों का दिल हुआ बाग़-बाग़, फागुन से पहले ही हो गई फाग। रच गया इतिहास और छिड़ गई बकवास। मतलब अबकी बार, कोकराझार। बेड़ा ग़र्क़, बंटाधार।।
बिचारी टेंशन को भी पता नहीं था कि अटेंशन के चक्कर में पेंशन की कगार पर आ जाएगी। इसीलिए कहते हैं कि रिटायरमेंट की उम्र में घुड़सवारी छोड़ देनी चाहिए। वो भी ख़ास कर तब, जब घोड़े को बिदकाने वाले पीछे पड़े हों। पड़ गी नी धोड़ा में धूळ…? अब देखते हैं कि चूल्हे का रोष किस-किस परिण्डे पर फूटता है।
इस वाक़ये को मानवीय चूक बता कर हल्काने का कितना भी प्रयास किया जाए, सच को झुठलाया नहीं जा सकता। जो सरकार के मुखिया और दरबारियों की घोर लापरवाही की पोल खोलता है। बीते साल की घोषणाओं को आठ मिनट तक ठाठ से बांचने वाले मुख्यमंत्री ने जहां अपनी मानसिक स्थिति को उजागर किया। वहीं उनकी पार्टी के मंत्रियों और विधायकों ने लगातार तालियां ठोकते हुए यह साबित किया कि सरकार वो नहीं नौकरशाह चला रहे हैं। “जैसे ऊधो, वैसे माधो” वाली बात को चरितार्थ करते हालात ने पूरी सरकार के उस नाकारापन की कलई भी खोली है, जो उचित नहीं। एक मुख्यमंत्री और टीम को अपनी ही योजनाओं का पता न हो, इससे बड़ी शर्म की बात शायद ही कोई हो। पता चलता है कि सरकार का नेतृत्व और नुमाइंदगी करने वाले अपने ही कामों को लेकर सजग नहीं। शायद यह दिन-रात अपनी कुर्सी व औरों की कमियों की चिंता का परिणाम है।
मुखिया जी कितनी ही माफ़ी मांगते रहें, निकली हुई बात का दूर तक जाना तय है। इस साल सूबे में होने वाले चुनाव में यह लापरवाही हर हाल में बड़ा मुद्दा होगी, इसमें कोई शक़ नहीं। एक तरफ भाजपा इस मुद्दे को मशाल बना कर अंधेरगर्दी की पोल खोलेगी। वहीं सत्ता के अंतर्विरोधी विपक्ष की इस मशाल पर तेल छिड़कने का मौक़ा नहीं गंवाएंगे।
युवाओं की भरमार वाले देश मे 71 साल के बुज़ुर्ग की हुक़ूमत पर सवालिया निशान लगाने वाला यह मामला सत्तारूढ़ पार्टी की नैया के पेंदे में छेद करे बिना ठंडा पड़ जाए, ऐसा मौजूदा हालात में मुमकिन नहीं। बहरहाल, जादूगर का जादू उसकी अपनी याददाश्त खोती खोपड़ी ने फैल कर दिया है। जिससे आम जनता का भरम भी एक हद तक टूटा है। जो एंटी-इनकंबेंसी की आग को हवा देने का काम करेगा। मारे गए गुलफ़ाम अकड़ में। मारे गए गुलफ़ाम।।