■ मेरे एक प्रेरक “चार्ली”
■ लघु आत्मकथ्य-
【प्रणय प्रभात】
सामान्यतः संजीदगी-पसंद होने के बाद भी मैं अक़्सर “मसखरी-पसंद” हो जाता हूँ। यह मेरे वो सभी परिचित जानते हैं, जिन्होंने मेरे साथ थोड़ा सा भी वक़्त बिताया है। शर्त बस इतनी सी रही कि मैं थोड़ा सा खुल जाऊं। ऐसा भी हर किसी के साथ नहीं। बस किसी किसी के साथ। इसके पीछे की दो वजह रहीं। पहली मेरा बहिर्मुखी (मुखर) होना और दूसरा “चार्ली चैप्लिन” जैसे विशिष्ट किरदार से प्रेरित और प्रभावित होना। अपनी पीड़ाओं को दबा कर हंसना और हंसाना तथा ज़िंदगी का साथ पूरी ज़िंदादिली से निभाना हमेशा से रास आया। आज तक आ रहा है। यही जीवट विषम हालात से उबारता रहा है। शिद्दत से जीने की ज़िद्दत हमेशा “शो मस्ट गो ऑन” वाला वाक्य याद दिलाती रहती है। जब भी हताश होता हूँ, मुझमें एक चार्ली जाग उठता है। जो बिना कुछ बोले बता जाता है कि हम दुनिया के रंगमंच पर हैं और अपनी उस भूमिका के साथ न्याय करने के लिए हैं, जो ऊपर बैठे निर्माता-निर्देशक ने हमारे लिए तय की है। शुक्रिया मिस्टर चार्ली!