“ प्रेमक बोल सँ लोक केँ जीत सकैत छी ”
बरबादी का जश्न मनाऊं
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
23/86.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
काम पर जाती हुई स्त्रियाँ..
गुरु मांत है गुरु पिता है गुरु गुरु सर्वे गुरु
भाषा और बोली में वहीं अंतर है जितना कि समन्दर और तालाब में ह
कुछ मन्नतें पूरी होने तक वफ़ादार रहना ऐ ज़िन्दगी.
चाहो जिसे चाहो तो बेलौस होके चाहो
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
आत्म चिंतन करो दोस्तों,देश का नेता अच्छा हो
*देना प्रभु जी स्वस्थ तन, जब तक जीवित प्राण(कुंडलिया )*
इस दौर में सुनना ही गुनाह है सरकार।
साँवलें रंग में सादगी समेटे,