■ बोली की ग़ज़ल …..
👉 बोली की ग़ज़ल….
【प्रणय प्रभात】
★ सुख-दुःख दोनों हैं हमजोली।
आओ, खेलें आँख-मिचौली।।
★ तब तक अपने रहे पराये।
जब तक मन की गांठ न खोली।।
★ नीम रहा कड़वा का कड़वा।
पक कर मीठी हुई निंबोली।।
★ कब तक पेड़ खड़ा रह पाता?
जड़ तो जड़, मिट्टी भी पोली।।
★ इंसानी बस्ती का सच है।
गंदा तकिया, उजली ख़ोली।।
★ गंगा तट पर पाप सलामत।
सब ने मैली चादर धो ली।।
★ गूंगे बोलें, बहरे सुन लें।
सबसे बड़ी प्यार की बोली।।
#प्रभात_प्रणय
(08 फरवरी 2017)