■ बातों बातों में…
#व्यंग्य
■ समझ जाइए बस!
【प्रणय प्रभात】
आज सुबह-सुबह एक मित्रनुमा सज्जन का कॉल आया। उसकी शिकायत थी कि,
“बहुत दिनों से मुलाक़ात नहीं हुई।”
मेरा सहज जवाब था-
“हाँ! एक अरसे से शायद मुझे तुमसे कोई काम नहीं पड़ा और तुम्हें भी मेरी ज़रुरत नहीं पड़ी।”
मेरा जवाब थोड़ा तल्ख़ था, मगर ग़लत नहीं था। उधर से कॉल कट चुका था। इधर दिल का बोझ हट चुका था। वैसे भी ऐसों से बिना मतलब काहे की दुआ-सलाम और काहे की राम-राम? अवसरवादियों! आपको दूर से प्रणाम। जय सियाराम।।
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